Friday, August 28, 2009

अब मंदाकिनी बेचारी नहीं रहेगी। इसके बचाने के साथ ही सतत प्रवाह बनाये रखने के फैसले यहां पर बैठी संसद करेगी। इस संसद में उद्गम से लेकर यमुना में मिलने के स्थान मोहना घाट तक के दोनो ओर के सभी गांवों से लोगों का प्रतिनिधित्व होगा। मंदाकिनी नदी संसद का संयोजक नयागांव के 'छोटे राजा' चौबे हेमराज चतुर्वेदी को बनाया गया।
यह संसद सिर्फ मंदाकिनी के लिए ही नही बल्कि सरयू, पयस्वनी व झूरी नदी के लिए भी काम करेगी। इस संसद में नदी के दोनों ओर के गांवों के प्रतिनिधि होंगे। इसके लिए सबसे पहले नदी के किनारे दोनो तरफ के गांवों की पदयात्रा करके की जायेगी और हर गांव में प्रकृति प्रेमी लोग तलाशे जायेंगे। इस संसद में सभी वर्गो की भागीदारी सुनिश्चित करने का काम हेमराज चतुर्वेदी करेंगे। इसमें संत, महन्त, समाजसेवी, व्यापारी, छात्र, पत्रकार, महिलाएं सभी होंगे। परिसंवाद के दौरान ग्रामोदय विवि और रामभद्राचार्य विकलांग विवि के छात्रों ने नदी की पद यात्रा करने के लिए अपनी सहमति दी। उनका काम नदी के किनारे के कब्जे, प्रदूषण के कारक, जलीय वनस्पतियों का अध्ययन के साथ ही समीक्षात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करना सुनिश्चित किया गया। इसके साथ ही उनको जिम्मेदारी दी गई कि वे यात्रा के दौरान ग्रामीणों के साथ ही सभी लोगों को जल को बचाने की प्रेरणा देने का भी काम करेंगे। इसमें एक बात और निकल कर आयी कि मंदाकिनी को रामघाट के पास सर्वाधिक प्रदूषित सीवेज का पानी कर रहा है। बाद में परिसंवाद का मुख्य विषय हमारा चित्रकूट कैसा हो? पर आकर टिक गया। राजेन्द्र सिंह ने कहा कि मंदाकिनी नदी संसद इसके लिए आपस में परिसंवाद कर और फिर चिंतन मनन कर एक रिपोर्ट करे कि वास्तव में चित्रकूट का स्वरुप कैसा हो। दिल्ली से आये अरुण तिवारी ने कहा बुंदेलखंड के इस अलौकिक भूभाग की परिस्थितियां इशारा करती हैं कि यहां पर सरकार को विकास का अलग ही माडल विकसित करना चाहिये। यहां पर पानी वाले बाबा ने संतों के साथ ही स्थानीय लोगों से मंदाकिनी के बारे में चर्चा की।

संत तुलसी की जन्म भूमि में यमुना नदी के तुलसी घाट पर मछलियों व जलचर जीवों का शिकार रोके नहीं रुक रहा है।
तुलसी घाट व आस पास मत्स्य आखेट से श्रद्घालुओं की धार्मिक भावनायें दूषित होती हें। इसके साथ ही दिनों दिन यमुना नदी का जल प्रदूषित हो रहा है। उनका कहना है कि जल को प्रदूषण से मुक्त रखने में मछलियों व जल जीवों का बहुत बड़ा योगदान है। वे बताते हैं कि इस मामले में पूर्व जिलाधिकारी सुभाष चन्द्र शर्मा ने यहां पर मत्स्य आखेट पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया था। उन्होंने पूर्व जिलाधिकारी द्वारा जारी पत्र की प्रति दिखाते हुए बताया कि तुलसी घाट के 1-1 कि मी पूरब व पश्चिम तक मत्स्य आखेट व जलीय जन्तुओं का शिकार व आखेट पर पूरी तरह पाबन्दी का निर्देश जारी करते हुये इसके क्रियान्वयन हेतु एस डी एम मऊ, नगर पंचायत राजापुर व थानाध्यक्ष राजापुर को जारी किया गया था। लेकिन इस मामले पर किसी भी स्तर पर कोई कारगर कार्यवाही नही की गयी। नगर पंचायत एवं एस डी एम मऊ द्वारा न तो उपरोक्त सम्बंध कोई दिशा निर्देश का कार्यान्वयन किया गया न ही घाट के पूरब व पश्चिम सीमा आदि निर्धारित करते हुये बोर्ड आदि लगवाये गये। हां इतना जरूर है कि स्थानीय स्तर पर मंदिर प्रबन्धन द्वारा थाना में सूचना देने पर घाट पर बरवा डालने वालों को शिकार का प्रयास करते इक्का दुक्का लोगों को पकड़ने या खदेड़ने का कार्य किया गया है। कि एक ओर जहां शासन प्रशासन समाज सेवी संगठन विभिन्न स्तरों पर जल संरक्षण तथा जल व नदी को प्रदूषण मुक्त रखने के लिये ढिंढोरा पीट रहे हैं वही दूसरी ओर जल को प्रदूषण मुक्त रखने में सर्वाधिक महत्व मछलियों व जलचर जीवों के आखेट की अनदेखी कर रहे है। उन्होंने जिलाधिकारी से तुलसी घाट के 1-1 कि मी पूरब व पश्चिम तक मत्स्य आखेट व जलचर जीवों के शिकार का कारगर उपाय कर पूर्व जिलाधिकारी द्वारा जारी आदेश का पालन करायें जाने की मांग की है।

रामबोला तुलसीदास

प्रभु श्रीराम की कथा को जन-सुलभ बनाने के लिए तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की। इसके माध्यम से उन्होंने संपूर्ण मानव जाति को कई संदेश दिए। गोस्वामी के अन्य प्रामाणिक ग्रंथों में रामलला नहछू,रामाज्ञाप्रश्न, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, गीतावली,कृष्णगीतावली,विनय पत्रिका, बरवै रामायण, दोहावली,कवितावली,हनुमान बाहुक,वैराग्य संदीपनीआदि प्रमुख हैं। हनुमान चालीसा के रचयिता भी तुलसीदास ही हैं। उनका जन्म वर्ष १४९७ चित्रकूट के राजापुर में हुआ था।
इनके पिता आत्माराम और माता थीं हुलसी थीं। किंवदंती है कि नौ महीने के बजाय तुलसी मां के गर्भ में बारह माह रहे। जन्म लेते ही उनके मुख से राम शब्द निकला । कहते हैं कि उनकी माता ने किसी अनिष्ट की आशंका से नवजात तुलसी को अपनी दासी चुनियांके साथ उसकी ससुराल भेज दिया। अगले ही दिन उनकी मां की मृत्यु हो गई। तुलसी जब मात्र 6वर्ष के थे, तो चुनियांका भी देहांत हो गया। मान्यता है कि भगवान शंकर की प्रेरणा से स्वामी नरहरिदास ने बालक तुलसी को ढूंढ निकाला और उनका नाम रामबोलारख दिया। तुलसीदास का विवाह रत्नावली के साथ हुआ
एक घटनाक्रम में रत्नावली ने अपनी पति को धिक्कारा, जिससे वे प्रभु श्रीराम की भक्ति की ओर उन्मुख हो गए। गुण-अवगुण की व्याख्या गोस्वामी तुलसीदास ने राम की कथा जन-सुलभ बनाने के लिए रामचरितमानस की रचना की। इसमें उन्होंने सामान्य आदमी के गुण-अवगुण की व्याख्या बडे ही सुंदर शब्दों में की है।बालकांड में एक दोहा है-
साधु चरित सुभचरित कपासू।
निसरबिसदगुनमयफल जासू।
जो सहिदुख परछिद्रदुरावा।
बंदनीयजेहिंजग जस पावा।।
अर्थात सज्जन पुरुषों का चरित्र कपास के समान नीरस, लेकिन गुणों से भरपूर होता है। जिस प्रकार कपास से बना धागा सुई के छेद को स्वयं से ढककर वस्त्र तैयार करता है, उसी प्रकार संत दूसरों के छिद्रों (दोषों) को ढकने के लिए स्वयं अपार दुख सहते हैं। इसलिए ऐसे पुरुष संसार में वंदनीय और यशस्वी होते हैं। उन्होंने सत्संगति की महत्ता पर भी बल दिया है। वे मानते हैं कि राम की कृपा के बिना व्यक्ति को सत्संगति का लाभ नहीं मिल सकता है-
बिनुसत्संग विवेक न होई। राम कृपा बिन सुलभ न सोई। -मनोविज्ञान की परख गोस्वामी तुलसीदास की प्रतिभा छोटी उम्र से ही दिखने लगी थी। उनकी कवित्व क्षमता से कई समकालीन कवि ईष्र्या करने लगे थे। ऐसे लोगों के संदर्भ में तुलसी ने जो व्याख्या की है, वह आज के समय में भी सटीक बैठती है।
वे कहते हैं-जिन कबित केहिलाग न नीका।सरस होउअथवा अति फीका। जे पर भनितिसुनतहरषाही।तेबर पुरुष बहुत जग नाही।अपनी कविता, चाहे रसपूर्णहो या अत्यंत फीकी, किसे अच्छी नहीं लगती। लेकिन जो लोग दूसरों की रचना सुनकर प्रसन्न होते हों, ऐसे श्रेष्ठ पुरुष जगत में अधिक नहीं हैं।
अरण्यकांडमें शूर्पणखाके माध्यम से वे लिखते हैं कि शत्रु, रोग, अग्नि, पाप, स्वामी और सर्प को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए। इसी प्रकार सुंदरकांडमें एक स्थान पर तुलसी लिखते हैं कि मंत्री, वैद्य और गुरु लाभ की आशा से आपके लिए हितकारी बात न करें, तो राज्य, शरीर और धर्म, इन तीनों का नाश हो जाता है। समर्थ की पहचान वे कहते हैं-शुभ अरुअशुभ सलिल सब बहई।
सुरसईकोउअपुनीतन कहई।समरथकहुंनहिंदोषुगोसाई। रबिपावक सुरसरिकी नाई।
गंगा में शुभ और अशुभ सभी प्रकार का जल बहता है, लेकिन गंगा को कोई अपवित्र नहीं कह पाता है। सूर्य, अग्नि और गंगा के समान, जो व्यक्ति साम‌र्थ्यवान होते हैं, उनके दोषों पर कोई उंगली नहीं उठा पाता है। प्रेम के भूखे राम तुलसी ने अपना सारा जीवन श्रीराम की भक्ति में बिता दिया। वे अयोध्याकांडमें लिखते हैं-रामहि केवल प्रेमुपिआरा।जानिलेउजो जान निहारा। अर्थात श्रीराम को मात्र प्रेम प्यारा है, जो जानना चाहता है, वह जान ले। भक्त की सच्ची पुकार पर भगवान उनके पास दौडे चले आते हैं। तुलसीदास पुराण और वेदों के माध्यम से लोगों से कहते हैं कि सुबुद्धिऔर कुबुद्धि का वास सभी लोगों के हृदय में होता है। जहां सुबुद्धिहै, वहीं सुख का वास है और जहां कुबुद्धि है, वहां विपत्ति आनी निश्चित है। इतने वर्षो बाद आज भी तुलसी के संदेश प्रासंगिक हैं।

रामसेतु


हम भारतीय विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के वारिस है तथा हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा उत्कृष्ट प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। किंतु दीर्घकाल की परतंत्रता ने हमारे गौरव को इतना गहरा आघात पहुंचाया कि हम अपनी प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति के बारे में खोज करने की तथा उसको समझने की इच्छा ही छोड़ बैठे। परंतु स्वतंत्र भारत में पले तथा पढ़े-लिखे युवक-युवतियां सत्य की खोज करने में समर्थ है तथा छानबीन के आधार पर निर्धारित तथ्यों तथा जीवन मूल्यों को विश्व के आगे गर्वपूर्वक रखने का साहस भी रखते है। श्रीराम द्वारा स्थापित आदर्श हमारी प्राचीन परंपराओं तथा जीवन मूल्यों के अभिन्न अंग है। वास्तव में श्रीराम भारतीयों के रोम-रोम में बसे है। रामसेतु पर उठ रहे तरह-तरह के सवालों से श्रद्धालु जनों की जहां भावना आहत हो रही है,वहीं लोगों में इन प्रश्नों के समाधान की जिज्ञासा भी है। हम इन प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयत्न करे:- श्रीराम की कहानी प्रथम बार महर्षि वाल्मीकि ने लिखी थी। वाल्मीकि रामायण श्रीराम के अयोध्या में सिंहासनारूढ़ होने के बाद लिखी गई। महर्षि वाल्मीकि एक महान खगोलविद् थे। उन्होंने राम के जीवन में घटित घटनाओं से संबंधित तत्कालीन ग्रह, नक्षत्र और राशियों की स्थिति का वर्णन किया है। इन खगोलीय स्थितियों की वास्तविक तिथियां 'प्लैनेटेरियम साफ्टवेयर' के माध्यम से जानी जा सकती है। भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' नामक साफ्टवेयर प्राप्त किया, जिससे सूर्य/ चंद्रमा के ग्रहण की तिथियां तथा अन्य ग्रहों की स्थिति तथा पृथ्वी से उनकी दूरी वैज्ञानिक तथा खगोलीय पद्धति से जानी जा सकती है। इसके द्वारा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार पर आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर की तारीखें निकाली है। इस प्रकार उन्होंने श्रीराम के जन्म से लेकर 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या पहुंचने तक की घटनाओं की तिथियों का पता लगाया है। इन सबका अत्यंत रोचक एवं विश्वसनीय वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक 'डेटिंग द एरा ऑफ लार्ड राम' में किया है। इसमें से कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण यहां भी प्रस्तुत किए जा रहे है।श्रीराम की जन्म तिथिमहर्षि वाल्मीकि ने बालकाण्ड के सर्ग 18 के श्लोक 8 और 9 में वर्णन किया है कि श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ। उस समय सूर्य,मंगल,गुरु,शनि व शुक्र ये पांच ग्रह उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। ग्रहों,नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति इस प्रकार थी-सूर्य मेष में,मंगल मकर में,बृहस्पति कर्क में, शनि तुला में और शुक्र मीन में थे। चैत्र माह में शुक्ल पक्ष नवमी की दोपहर 12 बजे का समय था।जब उपर्युक्त खगोलीय स्थिति को कंप्यूटर में डाला गया तो 'प्लैनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर' के माध्यम से यह निर्धारित किया गया कि 10 जनवरी, 5114 ई.पू. दोपहर के समय अयोध्या के लेटीच्यूड तथा लांगीच्यूड से ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति बिल्कुल वही थी, जो महर्षि वाल्मीकि ने वर्णित की है। इस प्रकार श्रीराम का जन्म 10 जनवरी सन् 5114 ई. पू.(7117 वर्ष पूर्व)को हुआ जो भारतीय कैलेण्डर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है और समय 12 बजे से 1 बजे के बीच का है।श्रीराम के वनवास की तिथिवाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड (2/4/18) के अनुसार महाराजा दशरथ श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते थे क्योंकि उस समय उनका(दशरथ जी) जन्म नक्षत्र सूर्य, मंगल और राहु से घिरा हुआ था। ऐसी खगोलीय स्थिति में या तो राजा मारा जाता है या वह किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाता है। राजा दशरथ मीन राशि के थे और उनका नक्षत्र रेवती था ये सभी तथ्य कंप्यूटर में डाले तो पाया कि 5 जनवरी वर्ष 5089 ई.पू.के दिन सूर्य,मंगल और राहु तीनों मीन राशि के रेवती नक्षत्र पर स्थित थे। यह सर्वविदित है कि राज्य तिलक वाले दिन ही राम को वनवास जाना पड़ा था। इस प्रकार यह वही दिन था जब श्रीराम को अयोध्या छोड़ कर 14 वर्ष के लिए वन में जाना पड़ा। उस समय श्रीराम की आयु 25 वर्ष (5114- 5089) की निकलती है तथा वाल्मीकि रामायण में अनेक श्लोक यह इंगित करते है कि जब श्रीराम ने 14 वर्ष के लिए अयोध्या से वनवास को प्रस्थान किया तब वे 25 वर्ष के थे।खर-दूषण के साथ युद्ध के समय सूर्यग्रहणवाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के 13 वें साल के मध्य में श्रीराम का खर-दूषण से युद्ध हुआ तथा उस समय सूर्यग्रहण लगा था और मंगल ग्रहों के मध्य में था। जब इस तारीख के बारे में कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से जांच की गई तो पता चला कि यह तिथि 5 अक्टूबर 5077 ई.पू. ; अमावस्या थी। इस दिन सूर्य ग्रहण हुआ जो पंचवटी (20 डिग्री सेल्शियस एन 73 डिग्री सेल्शियस इ) से देखा जा सकता था। उस दिन ग्रहों की स्थिति बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी वाल्मीकि जी ने वर्णित की- मंगल ग्रह बीच में था-एक दिशा में शुक्र और बुध तथा दूसरी दिशा में सूर्य तथा शनि थे।अन्य महत्वपूर्ण तिथियांकिसी एक समय पर बारह में से छह राशियों को ही आकाश में देखा जा सकता है। वाल्मीकि रामायण में हनुमान के लंका से वापस समुद्र पार आने के समय आठ राशियों, ग्रहों तथा नक्षत्रों के दृश्य को अत्यंत रोचक ढंग से वर्णित किया गया है। ये खगोलीय स्थिति श्री भटनागर द्वारा प्लैनेटेरियम के माध्यम से प्रिन्ट किए हुए 14 सितंबर 5076 ई.पू. की सुबह 6:30 बजे से सुबह 11 बजे तक के आकाश से बिल्कुल मिलती है। इसी प्रकार अन्य अध्यायों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित ग्रहों की स्थिति के अनुसार कई बार दूसरी घटनाओं की तिथियां भी साफ्टवेयर के माध्यम से निकाली गई जैसे श्रीराम ने अपने 14 वर्ष के वनवास की यात्रा 2 जनवरी 5076 ई.पू.को पूर्ण की और ये दिन चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी ही था। इस प्रकार जब श्रीराम अयोध्या लौटे तो वे 39 वर्ष के थे (5114-5075)।वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीराम की सेना ने रामेश्वरम से श्रीलंका तक समुद्र के ऊपर पुल बनाया। इसी पुल को पार कर श्रीराम ने रावण पर विजय पाई। हाल ही में नासा ने इंटरनेट पर एक सेतु के वो अवशेष दिखाए है, जो पॉक स्ट्रेट में समुद्र के भीतर रामेश्वरम(धनुषकोटि) से लंका में तलाई मन्नार तक 30 किलोमीटर लंबे रास्ते में पड़े है। वास्तव में वाल्मीकि रामायण में लिखा है कि विश्वकर्मा की तरह नल एक महान शिल्पकार थे जिनके मार्गदर्शन में पुल का निर्माण करवाया गया। यह निर्माण वानर सेना द्वारा यंत्रों के उपयोग से समुद्र तट पर लाई गई शिलाओं, चट्टानों, पेड़ों तथा लकड़ियों के उपयोग से किया गया। महान शिल्पकार नल के निर्देशानुसार महाबलि वानर बड़ी-बड़ी शिलाओं तथा चट्टानों को उखाड़कर यंत्रों द्वारा समुद्र तट पर ले आते थे। साथ ही वो बहुत से बड़े-बड़े वृक्षों को, जिनमें ताड़, नारियल,बकुल,आम,अशोक आदि शामिल थे, समुद्र तट पर पहुंचाते थे। नल ने कई वानरों को बहुत लम्बी रस्सियां दे दोनों तरफ खड़ा कर दिया था। इन रस्सियों के बीचोबीच पत्थर,चट्टानें, वृक्ष तथा लताएं डालकर वानर सेतु बांध रहे थे। इसे बांधने में 5 दिन का समय लगा। यह पुल श्रीराम द्वारा तीन दिन की खोजबीन के बाद चुने हुए समुद्र के उस भाग पर बनवाया गया जहां पानी बहुत कम गहरा था तथा जलमग्न भूमार्ग पहले से ही उपलब्ध था। इसलिए यह विवाद व्यर्थ है कि रामसेतु मानव निर्मित है या नहीं, क्योंकि यह पुल जलमग्न, द्वीपों, पर्वतों तथा बरेतीयों वाले प्राकृतिक मार्गो को जोड़कर उनके ऊपर ही बनवाया गया था।
 

Wednesday, August 26, 2009

दिल्ली का लाल किला हमारा

दिल्ली का लाल किला हमारा : आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के पोते मिर्जा जमशेद बुखत के बेटे मिर्जा मोहम्मद बेदार बुखत की बीवी सुल्ताना बेगम ने लाल किले पर अपना हक जताया है। उन्होंने ऐलान किया है कि इसे हासिल करने के लिए वे ईद के बाद हुमायूं के मकबरे पर बेमियादी धरना शुरू करेंगी। वे देश भर के मुस्लिम तुर्को को एक मंच पर लाने की भी ख्वाहिश रखती हैं। उन्होंने कहा है कि उनके साथ धरने में देश भर से खासी संख्या में तुर्क भी शामिल होंगे। लखनऊ में पहली जनवरी 1950 को जन्मी सुल्ताना बेगम कहती हैं कि 15 अगस्त 1965 को उनका निकाह मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के पौत्र मिर्जा जमशेद बुखत के बेटे मिर्जा मोहम्मद बेदार बुखत से कोलकाता में हुआ। उनके शौहर का इंतकाल 22 मई 1980 को हो गया था। इसके बाद उन्होंने जिंदगी का मकसद बदल लिया। मुगल बादशाह तुर्क बिरादरी से थे। मुगल शासन तक हिंदुस्तान में तुर्को की आर्थिक व सामाजिक स्थिति बेहतर थी। आजादी के बाद तुर्को की स्थिति लगातार बिगड़ती गई।
उन्हें आखिरी मुगल बादशाह के देश भर में फैले विभिन्न मकबरों व अन्य संपत्ति पर भी उन्हें हक चाहिए। केंद्र सरकार की 400 रुपये प्रति माह मिलने वाली पेंशन को उन्होंने नाकाफी बताया और कहा कि इस पैसे से पेट नहीं भरता फिर भी यह उनका हक है और इसका इस्तेमाल वे उस खोए हक को पाने के लिए कर रही हैं, जिस पर केंद्र व प्रदेश सरकारें मौज कर रही हैं।